Thursday, October 16, 2008
Mjboor Na Tha...........................
उसके कदमों पे गिर जाता मैं इतना भी मज़बूर न था
चाहता था बहुत उसे पर ये मेरे दिल को मंज़ूर ना था
वफ़ा के बदले मिलती वफ़ा यह ज़माने का दस्तूर न था
कल प्यार का मौसम था और आज भी चाहत के मेले है
हम कल भी अकेले थे और आज भी अकेले है
जब तुमने हीं ना समझा तो क्या करे हम गम
जी लेंगे जैसे जीते आए हैं हम
सीने पे वार सहे दिल पर ज़ख्म खाए हैं
सारे अरमान बेच डाले फिर भी हार के आए हैं
तु जो भी कहो जो भी करो सब तेरा करम
हँसते रहें हैं हँसते रहेंगे चाहे कर लो जितने सितम
वह कहती हैं अब कुछ भी नहीं है हम दोनो में
फिर भी उसकी बाते क्यों चुभती हैं दिल के कोने कोने में
प्यार में तेरे तन मन पर गिरी जाने कितनी बिजलियाँ
प्यार की एक एक बूँद को तरसा जैसे पानी बिन मछलियाँ
उसे बस साथ चाहिए था प्यार नहीं
अच्छा हुआ दिल टूट गया अब किसी का इन्तज़ार नहीं
मैं समझ पाता उसको इतना भी समझदार ना था
उसकी चाहत एक ज़रुरत थी उसका प्यार प्यार ना था
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