Monday, October 6, 2008

Nafrat..............


हम हैं काँटे ना कीजिए नफ़रत
हम भी फूलों के साथ पलते हैं

लुत्फ़ इसका भी पूछिए उनसे
लड़खड़ाकर के जो संभलते हैं

वक्त आने पे आखरी देखा
लोग हसरत से हाथ मलते हैं

सो गये जिन्न खो गई परियाँ
बच्चे ना इनसे अब बहलते हैं

सच की पुख़्ता ज़मीन पे चलिए
देखिए फिर कहाँ फिसलते हैं

ग़म नहीं गर कहे बुरा दुनिया
अच्छे इंसा से लोग जलते हैं

जिस्म के साथ दिल नहीं थकता
कितने अरमां अभी मचलते हैं

ज़िंदगी भर क्या दौड़ोगे
आओ कुछ देर को टहलते

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